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जरा आकर तो देखें नेता परांठा जंक्शन पर : वोट ही वोट!

ग्राउंड जीरो मुरथल बन रहा बड़ी फूड इंडस्ट्री

मुरथल! यह नाम अब किसी पहचान का मोहताज नहीं है। जैसे गुरुग्राम ग्लोबल सिटी है, वैसे ही मुरथल को अपने परांठों के लिए जाना जाता है। दिल्ली से सटा होने की वजह से सोनीपत का यह एरिया न केवल ‘परांठा जंक्शन’ बन गया है बल्कि फूड इंडस्ट्री के तौर पर अब इस इलाके की पहचान बन चुकी है। रोजाना एक लाख से अधिक लोग अकेले ‘मुरथल जंक्शन’ पर आते हैं। शनिवार और रविवार को यह संख्या 3 से 4 लाख तक पहुंच जाती है। ढाबे और होटल खाने के शौकीन लोगों से पूरी तरह पैक हो जाते हैं। इतना ही नहीं, त्योहारों, क्रिसमिस-डे, नववर्ष, पंद्रह अगस्त, 26 जनवरी, करवाचौथ के मौकों पर यहां आने वाले लोगों की संख्या 5 लाख तक होती है। मुरथल स्थित छोटे से लेकर बड़े ढाबों पर इन दिनों वेटिंग रहती है और लोगों को खाना खाने के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है। कुंडली बार्डर से लेकर मुरथल या यूं कहें कि गन्नौर तक का एरिया अब ढाबों का जंक्शन बन चुका है।

गांवों से इकट्ठा करते हैं दूध

हर ढाबे पर दूध की खपत रहती है और इसे आसपास के गांवों से ही इकट्ठा किया जाता है। कुछ प्रोडक्ट ऐसे हैं, जो गाय के दूध से बनते हैं। गाय का दूध भी स्थानीय पशुपालकों से ही लिया जाता है। मार्केट से भी दूध की खरीद की जाती है। कुछ खाद्य पदार्थों में थैली का ही दूध इस्तेमाल होता है। दही-मक्खन के अलावा दूध से बनने वाले अधिकांश उत्पाद ढाबा संचालक खुद ही तैयार करते हैं। कुछ ढाबों पर देसी मक्खन मिलता है।

हजारों लोगों को मिला रोजगार

मन्नत ढाबों एवं हवेली की चेन चला रहे देवेंद्र कादियान का मानना है कि ढाबों ने युवाओं को रोजगार के नये अवसर दिए हैं। हर ढाबे पर औसतन 90 लोगों का स्टॉफ रहता है। सुखदेव ढाबे पर 250 से अधिक कर्मचारी काम करते हैं। मुरथल की मन्नत हवेली में 130 लोगों का स्टॉफ है। वेटर व कुकिंग स्टॉफ का मासिक वेतन 12 हजार से लेकर 30 हजार रुपये तक मासिक है। इनके ऊपर इंचार्ज और मैनेजर अलग से नियुक्त होते हैं।

प्रदेश सरकार को इन ढाबों से जहां मोटी कमाई हो रही है, वहीं स्थानीय युवाओं को रोजगार के नये अवसर भी इनसे मिले हैं। त्योहारों पर न तो ढाबा संचालकों को सांस लेने की फुर्सत होती है और न ही इनमें काम करने वाला स्टॉफ आराम कर पाता है। पहले यही माना जाता था कि नयी दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर आने-जाने वाले यात्रियों की वजह से इन ढाबों पर भीड़ रहती है, लेकिन अब ऐसा नहीं है। लोग वीकेंड पर भी यहां आने लगे हैं। छोटे-मोटे फेमिली फंक्शन के लिए भी फाइव स्टार रूपी ढाबों में आना लोग पसंद कर रहे हैं। पिछले आठ-दस वर्षों से यह इंडस्ट्री काफी फली-फूली है। यह न केवल कमाई का बड़ा जरिया बन गई है बल्कि लोगों को रोजगार के नये अवसर भी इससे पैदा हुए हैं। ढाबों में काम करने वाले वेटर व कुकिंग स्टॉफ के अलावा अप्रत्यक्ष तौर पर भी बड़ी संख्या में रोजगार के साधन जुटे हैं।

गांवों के दूध की खपत भी अब ढाबों पर होती है तो राशन की सप्लाई करने वालों, मसालों के व्यापारियों, सब्जियों का काम करने वाले लोगों की आमदनी भी बढ़ी है। कई ढाबों ने तो सीधे किसानों से ही टाइअप किया हुआ है। खेतों से सब्जियां सीधी ढाबों पर पहुंच रही हैं।

मुरथल में बने फाइव स्टार ढाबों व हवेली की तर्ज पर जीटी रोड पर 24 से अधिक प्रतिष्ठान बन चुके हैं। छोटे-बड़े मिलाकर 200 ढाबे हैं। पहले इसी एरिया में ढाबों की अच्छी- खासी संख्या थी, वहीं अब अम्बाला से लेकर कुंडली तक आप आपनी गाड़ी के ब्रेक कहीं भी लगा सकते हैं। यहां न केवल अच्छा खाना मिलेगा बल्कि अन्य मूलभूत सुविधाएं भी इन ढाबों पर मुहैया करवाई जा रही हैं।

हवेली प्रचलन भी अब हरियाणा में बढ़ने लगा है। करनाल में बनी हवेली बेशक छोटी ईंटों से बनी है और ऐतिहासिक लुक देती है, लेकिन लोग नये कन्सेप्ट भी अपना रहे हैं। फाइव स्टार सुविधाओं वाली आधुनिक हवेलियां भी अब बन गई हैं। नामचीन लोग भी अब फूडचेन में भागीदार हो गए हैं। बॉलीवुड अभिनेता धर्मेंद्र ने मुरथल में सुखदेव के नजदीक ‘गरम-धरम’ ढाबा खोला हुआ है।

वहीं ग्रेट खेली ने भी अब कुरुक्षेत्र के नजदीक ‘द ग्रेट खली’ के नाम पर ढाबा खोल दिया है। इसके साथ ही उन्होंने अपना जिम और स्पोर्ट्स एकेडमी भी बना दी है। कुरुक्षेत्र-शाहाबाद के बीच ‘मन्नत हवेली’ भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है।

जरा आइये तो इस ढाबे पर

जीटी रोड के अधिकांश ढाबों के बाहर मुख्य सड़क पर हाथ में झंडा लेकर इशारे से लोगों को बुलाने वाले ये लोग दिहाड़ी पर काम करते हैं। उन्हें रोजाना मेहनताना मिलता है। अम्बाला-कुरुक्षेत्र के बीच स्थित शगन ढाबे पर झंडा लेकर खड़े मेहन सिंह ग्राहकों काे कहते है, ‘जरा आइये तो इस ढाबे पर’।

उन्हें 200 रुपये दिहाड़ी मिलती है। मियां-बीबी अपना पेट पालने के लिए मजदूरी करते हैं। उनकी पत्नी गांवों में फसलों की कटाई करती है।

70 प्रतिशत स्थानीय स्टॉफ

ढाबों में काम करने वाले स्टॉफ में 70 प्रतिशत स्थानीय लोग हैं। 30 प्रतिशत स्टॉफ में कुकिंग स्टॉफ अधिक है, जो उत्तराखंड, मध्य-प्रदेश, बिहार, उत्तर-प्रदेश, नेपाल व मद्रास से संबंधित हैं। इंडियन के अलावा साउथ इंडियन और चाइनीज फूड की डिमांड अब इन ढाबों व हवेलियों पर होने लगी है। इसी लिहाज से ढाबा संचालक अपने पकवान तैयार करते हैं।

सेंट्रलाइज्ड किचन की तैयारी

कई ऐसे ढाबा संचालक हैं, जिनके पास ढाबों की संख्या 3-4 या इससे भी अधिक है। इन लोगों ने तय किया है कि अब वे मुरथल इंडस्ट्रियल एरिया में ही सेंट्रलाइज्ड किचन बनाएंगे ताकि फूड का टेस्ट एक जैसा रहे। मन्नत ग्रुप ऑफ होटल्स एंड ढाबा की किचन पर काम भी शुरू हो चुका है। उनके 11 ढाबे/हवेलियां जीटी रोड पर चल रही हैं।

हर ब्रांड की मिलेंगी दुकानें

ढाबों के बाहर कई तरह की दुकानें भी खुल गई हैं। दुकानदार ढाबा संचालकों को ही मासिक किराया देते हैं। इन ढाबों पर कई बड़े ब्रांड की दुकानें मिल सकती हैं। इनमें कपड़ों व जूतों के बड़े ब्रांड भी शामिल हैं।

फाइव स्टार ढाबों और हवेलियों के संचालक तीज-त्योहारों पर ऐसे आयोजन करते हैं कि लोग दौड़े चले आते हैं। गणतंत्र दिवस पर कई ढाबों वालों ने अपने संस्थानों को दुल्हन की तरह सजाया हुआ था। तिरंगे गुब्बारों, झालरों के अलावा स्टॉफ की ड्रेस भी ऐस थी कि माहौल देशभक्ति वाला नज़र आए। करवा-चौथ, भाई-दूज, रक्षाबंधन, न्यू ईयर व क्रिसमिस-डे के अलावा वेलेंटाइन-डे पर यहां भीड़ और बढ़ जाती है। ढाबों पर बच्चों के लिए टॉय ट्रेन, झूले, इलेक्ट्रिक कार का प्रबंध भी किया है।

अब रूम सर्विस का जमाना

फाइव स्टार ढाबों में कई ने यहां अपने होटल भी बना लिए हैं। यात्रियों के लिए रूम सर्विस का यह नया कंसेप्ट आया है, जो काफी कामयाब होता दिख रहा है। सोनीपत के इंडस्ट्रियल एरिया के अलावा यहां कई वेयर हाउस और यूनिवर्सिटी हैं। दिल्ली की कई इंडस्ट्री इस एरिया में शिफ्ट हो चुकी हैं। ऐसे में लोगों को ठहरने के लिए जगह की जरूरत को सुखदेव, पार्क ब्लू जैसे होटल पूरा कर रहे हैं।

टैक्स की चोरी भी

इस इंडस्ट्री में टैक्स चोरी के मामले भी कम नहीं हैं। विभाग से जुड़े अधिकारी मानते हैं कि कई ढाबा संचालक ईमानदारी से टैक्स जमा नहीं करवाते। बहुत ही कम लोगों का पक्का बिल काटा जाता है। अगर सभी ग्राहकों को पक्का बिल दिया जाए तो सरकार की आमदनी और भी बढ़ सकती है। सेंट्रल और स्टेट जीएसटी हर बिल में जोड़ा जाता है, लेकिन सरकार तक इसका कितना हिस्सा पहुंचता है यह जांच का विषय हो सकता है।

 

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