
‘स्टार’ ढाबों का असर, जुदा हो गई ट्रक वालों की डगर
ग्राउंड जीरो : फीकी पड़ रही ‘ट्रक लाइन’ ढाबों की चमक
‘ट्रक लाइन ढाबा’। जी हां, अब उन ढाबों की यही पहचान रह गई है, जिन पर ट्रक वाले ही अकसर रुकते हैं। इन ढाबों की ओर आम लोगों का रुझान अब लगभग खत्म हो गया है। यह अलग बात है कि टेस्ट चेंज के लिए भले कोई कभी चला जाए। अब ट्रक लाइन ढाबों की जगह लोगों ने ‘स्टार’ ढाबों पर जाना शुरू कर दिया है। सबसे रोचक बात यह है कि ढाबों का प्रचलन ही ट्रक और लम्बे रूट की बसों की वजह से हुआ था, आज ट्रक लाइन ढाबे अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं।
जमीनों की महंगी होती कीमतों के अलावा किराये और लीज राशि में बढ़ोतरी का असर भी इन ढाबों पर पड़ा है। दिल्ली-अमृतसर नेशनल हाईवे के अलावा हरियाणा के अधिकांश नेशनल व स्टेट हाईवे पर अब फैमिली ढाबों की संख्या लगातार बढ़ रही है। ट्रक चलाने वाले लोग अपनी लाइन के ही ढाबों पर रुकते हैं। यह उनकी मजबूरी भी है और जरूरत भी।
हमें तो डीजल ने लूटा, टायरों में कहां दम था
इस सफर पर दिखा कि ट्रक चालक अपने ट्रक पर कुछ लाइनें जरूर लिखवाते हैं। इन लाइनों में गंभीर संदेश तो होता ही है, लोग भी उन्हें पसंद करते हैं। सरकार के ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ अभियान को भी ट्रक वाले आगे बढ़ा रहे हैं। डीजल की बढ़ी हुई कीमतों का उन पर असर भी पड़ा है। एक ट्रक के पीछे लिखी ये लाइनें – ‘हमें तो डीजल ने लूटा, टायरों में कहांं दम था, हमें जहां भेजा गया, वहां का भाड़ा कम था’, उनकी दास्तां सुनाने को काफी हैं। लोगों को ट्रक वाले जागरूक भी करते हैं। ‘वाहन चलाते समय सौंदर्य दर्शन न करें, वरना देव दर्शन हो सकते हैं’। यह लाइन सेफ ड्राइविंग का ही तो संदेश दे रही है।
ट्रकों की करनी होती है चौकीदारी
जीटी रोड पर कुराड़ गांव के पास पंजाब हिमाचल ढाबे के संचालक सोनू कुमार बताते हैं कि ट्रक चालक किसी भी ढाबे पर रुकने से पहले आराम करने के लिए चारपाई, स्नान करने के लिए पानी व ट्रकों के खड़ा करने के लिए पर्याप्त जगह को अहमियत देते हैं। यही नहीं, ट्रकों की देखरेख भी ढाबे का चौकीदार करता है। इन सबकी गारंटी मिलने पर ढाबों पर ट्रकों की संख्या बढ़ती है। माल लोडिंग व अनलोडिंग में समय लगने पर ट्रक चालक कई-कई दिन तक ढाबे पर ही ठहरे रहते हैं। अन्यथा वे कंपनी में ब्रेक लगाते हैं। वह कहते हैं कि ट्रक लाइन के ढाबों में अब पहले वाली आमदनी नहीं रही। मगर अरसे से इस धंधे से जुड़े होने के कारण अब इसे छोड़कर दूसरा काम करना मुश्किल है।
खुद खाना पकानाकरते हैं पसंद
मान ढाबे पर ठहरे ट्रक चालक राज सिंह व कैंटर चालक जगतार सिंह बताते हैं कि कई बार महंगा माल होने के कारण मालिक सीधे कंपनी में रुकने की हिदायत देते हैं। माल सस्ता हो, खुद खाना पकाने का मन न हो या नहाने की बात आए तो ही ढाबे पर ठहरते हैं। पंजाब हिमाचल ढाबे पर चाय की चुस्कियां ले रहे चालक सर्बजीत व क्लीनर विक्रम बताते हैं कि सफर लंबा हो तो ही वे बीच में सुस्ताने के लिए ढाबों पर ठहरते हैं। अन्यथा खुद खाना पकाना पसंद करते हैं। जीटी रोड पर ट्रक लाइन ढाबे पर अधिकांश दाल व सब्जियों की एक प्लेट का रेट 70 से 80 रुपये है। चपाती का रेट 5 से 7 रुपये है। बगल या सामने वाले चमक दमक वाले ढाबों पर दाल व सब्जियों की एक प्लेट 250 से 425 रुपये तक मिलती है। इसके बावजूद ट्रक लाइन ढाबों को ग्राहकों का इंतजार रहता है।