
लोन फिर महंगा, ईएमआई भी बढ़ेगी
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने एक बार फिर नीतिगत दर रेपो में 0.25 प्रतिशत की वृद्धि की। अब यह दर 6.50 प्रतिशत हो गई है। रेपो दर में वृद्धि का मतलब है कि बैंकों और वित्तीय संस्थानों से लिया जाने वाला कर्ज महंगा होगा और मौजूदा ऋण की मासिक किस्त (ईएमआई) बढ़ेगी। रेपो दर वह ब्याज दर है, जिस पर वाणिज्यिक बैंक अपनी फौरी जरूरतों को पूरा करने के लिये केंद्रीय बैंक से कर्ज लेते हैं।
मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की तीन दिन की बैठक में लिए गए निर्णय की जानकारी आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने दी। मौद्रिक नीति समिति के छह सदस्यों में से चार ने रेपो दर बढ़ाने और उदार रुख को वापस लेने पर ध्यान देने के पक्ष में मतदान किया। मुद्रास्फीति को काबू में लाने के लिये आरबीआई इस साल मई से लेकर अब तक कुल छह बार में रेपो दर में 2.50 प्रतिशत की वृद्धि कर चुका है। आरबीआई ने वैश्विक स्तर पर संकट को देखते हुए अगले वित्त वर्ष 2023-24 में आर्थिक वृद्धि दर धीमी पड़कर 6.4 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है। गवर्नर ने कहा, ‘हमारा अनुमान है कि 2023-24 में स्थिर मूल्य पर आर्थिक वृद्धि दर 6.4 प्रतिशत रहेगी। पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 7.8 प्रतिशत, दूसरी तिमाही में 6.2 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में छह प्रतिशत और चौथी तिमाही में 5.8 प्रतिशत रहेगी।’ दास ने कहा, ‘वैश्विक स्तर पर उतार-चढ़ाव के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है।’
रुपये में तुलनात्मक उतार-चढ़ाव कम
रुपये के बारे में आरबीआई गवर्नर ने कहा कि एशिया की अन्य मुद्राओं की तुलना में घरेलू मुद्रा में अभी भी कम उतार-चढ़ाव है। रुपये में जो हाल में उतार-चढ़ाव आया है, वह वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान आई गिरावट से काफी कम है। बैंकों के मसले पर उन्होंने कहा कि पारदर्शिता लाने और ग्राहकों के हितों के संरक्षण को लेकर जुर्माना लगाये जाने के बारे में विभिन्न पक्षों से राय लेने को लेकर दिशानिर्देश का मसौदा जारी किया जाएगा।
महंगाई का जोखिम बरकरार रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2023-24 में खुदरा मुद्रास्फीति नरम पड़कर 5.3 प्रतिशत पर आने का अनुमान जताया। सब्जियों की कीमतों में भारी गिरावट तथा भारत की कच्चे तेल की खरीद 95 डॉलर प्रति बैरल रहने के आधार पर केंद्रीय बैंक ने चालू वित्त वर्ष के लिए मुद्रास्फीति के अपने अनुमान को कम किया है। दास ने कहा, ‘मुद्रास्फीति का परिदृश्य भू-राजनीतिक तनाव की वजह से पैदा हुई अनिश्चितताओं, वैश्विक वित्तीय बाजार में उतार-चढ़ाव, गैर-तेल जिंसों की कीमतों में तेजी और कच्चे तेल की कीमतों के उतार-चढ़ाव से प्रभावित होगा।’ उन्होंने कहा, ‘महंगाई को लेकर जोखिम दोनों तरफ बराबर है।’