
स्टोन क्रशर संचालकों को झटका, सुप्रीम कोर्ट ने कहा – एनजीटी के पास ही जाएं
एनजीटी के चेयरमैन जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली खंडपीठ द्वारा 18 जनवरी को महेंद्रगढ़ और चरखी दादरी जिले के 343 स्टोन क्रशर पर प्रति क्रशर 20 लाख रुपए के हिसाब से कुल 70 करोड़ रुपए का जुर्माना किया गया था। इसके खिलाफ स्टोन क्रशर संचालक सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए थे। मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट में 24 फरवरी को जस्टिस एम.आर. शाह व जस्टिस सी.टी. रवि कुमार की बेंच ने मामले को सुप्रीम कोर्ट में चलाने से मना करते हुए क्रशर संचालकों को एनजीटी में ही जाकर अपना मामला रखने को कहा है।
गौरतलब है कि एनजीटी द्वारा 343 स्टोन क्रशरों पर 70 करोड़ जुर्माना करने के बाद के बाद 64 स्टोन क्रशर संचालकों ने सुप्रीम कोर्ट में रिट दायर कर अपील की थी कि एनजीटी के आदेश को स्टे किया जाए और केस को सुप्रीम कोर्ट में चलाया जाए। सुप्रीम कोर्ट में लगभग 40 मिनट तक चली सुनवाई व बहस में याचिकाकर्ता इंजीनियर तेजपाल यादव के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि क्रशर संचालक बार-बार एनजीटी के फैसलों के खिलाफ समय खराब करने व केस को लंबे समय तक लटकाए रखने की मंशा से सुप्रीम कोर्ट पहुंच जाते हैं। उन्होंने 24 जुलाई 2019 को एनजीटी द्वारा महेंद्रगढ़ जिले के 72 स्टोन क्रशरों के बंद करने के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि जब 72 स्टोन क्रशरों के तुरंत बंद करने के आदेश हुए थे तब भी काफी क्रशर संचालक सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए थे और 15 महीने तक सुप्रीम कोर्ट में मामला चलने के बाद 2 नवंबर 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को वापस एनजीटी में भेजा था।
हवा में घुल चुका है जहर : याचिकाकर्ता
इंजीनियर तेजपाल यादव ने कहा कि विगत में एनजीटी को जिला प्रशासन द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट से पता चलता है कि अकेले महेंद्रगढ़ जिले में सिर्फ वायु जनित जानलेवा बीमारियों से ही लगभग प्रति वर्ष 42000 लोग बीमार पड़ रहे हैं, अगर यही हालात रहे तो इसमें कोई दो राय नहीं कि जिस तरह से कोरोना काल के दौरान लोग ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए तरस रहे थे, ‘हमें लगता है कि नांगल चौधरी क्षेत्र के लोगों को तो हर समय ऑक्सीजन सिलेंडर के साथ अपनी जिंदगी बितानी पड़ेगी क्योंकि हवा में तो जहर घुल चुका है।’
सभी शर्तों का हो रहा पालन : यूनियन प्रधान
चरखी दादरी :स्टोन क्रशर यूनियन दादरी के प्रधान सोमबीर घसोला ने कहा कि उन्होंने न्यायालय को अवगत करवाया है कि क्रशरों पर सभी शर्तों का पालन हो रहा है और क्षेत्र में प्रदूषण कम था। कुछ मामलों में स्टोन क्रशिंग इकाइयां 10 साल पहले से ध्वस्त कर दी गई हैं। उनमें से कुछ का संचालन ही नहीं हुआ है ऐसी इकाइयों पर भी जुर्माना लगा दिया गया है। एनजीटी द्वारा गठित समिति द्वारा अंतिम रिपोर्ट भी प्रस्तुत नहीं की गई थी और इससे पहले ही आदेश पारित कर दिए। अब उनको भरोसा है कि एनजीटी उनकी सुनवाई करेगी और क्रशर संचालकों के पक्ष में फैसला आएगा।