
शिक्षक हैं बस नाम को, दोपहर का भोजन शाम को
माॅडल संस्कृति स्कूल का सपना टूटने पर आंसू बहा रहा राजौंद/ कुछ और स्कूलों में भी ऐसा ही आलम
परिकल्पना तो यह थी कि औरों के लिए ‘मॉडल’ बनेगा राजकीय मॉडल संस्कृति वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, राजौंद। लेकिन आलम यह है कि स्कूल खुद ही अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है। बच्चों के बैठने के लिए कक्ष नहीं। पढ़ाने को टीचर महज नाम के ही हैं। और तो और दोपहर का भोजन (मिड डे मील) बच्चों को शाम को परोसा जाता है। पर्याप्त जगह और टीचर्स न होने के कारण स्कूल को शिफ्टों में चलाना पड़ रहा है। अभिभावक व हताश विद्यार्थी अव्यवस्था के आगे बेबश हैं। सिर्फ राजौंद के मॉडल संस्कृति स्कूल का ही यह हाल नहीं, कई अन्य जगह भी ऐसा ही आलम है। कलायत और गुहला चीका में भी प्रिंसिपल नहीं है। लचर व्यवस्था के चलते विद्यार्थी स्कूल छोड़ रहे हैं। पिछले साल विद्यार्थियों की संख्या 863 थी, वह घटकर 736 रह गई है। राजौंद के मॉडल संस्कृति स्कूल में छठी कक्षा में 47, सातवीं में 96 और आठवीं में 74 विद्यार्थी हैं। इनके लिए शिक्षा विभाग ने 9 अध्यापकों के पद स्वीकृत कर रखे हैं। लेकिन सारे पद खाली पड़े हैं। जिला व ब्लाक स्तर पर अधिकारियों ने इधर-उधर से तीन अध्यापकों की व्यवस्था की है। अगर बात करें 9वीं से 12वीं तक की तो इस विभाग में भी 24 स्वीकृत पदों में से 20 पद खाली पड़े हैं। यहां भी विभाग ने तीन अध्यापकों की व्यवस्था की है।
एक बरामदा, कई कक्षाएं
राजौंद के इस स्कूल की पुरानी बिल्डिंग कंडम हो चुकी थी, जिसे गिरा दिया गया। नयी बिल्डिंग को बनने में समय लगेगा। ऐसे में मजबूरी में छात्र बरामदे में बैठकर पढ़ाई करने को मजबूर हैं। दो शिफ्टों में चलने वाले स्कूल में एक ही बरामदे में अलग-अलग कक्षाओं के विद्यार्थी बैठते हैं। दो शिफ्टों और पर्याप्त जगह न होने के कारण छठी से आठवीं के बच्चों को ‘मिड डे मील’ शाम को खाना पड़ता है।
सड़क पर उतरने को मजबूर
अव्यवस्था से परेशान लोगों ने कुछ माह पूर्व महाराणा प्रताप चौक पर जाम लगा दिया था। यह जाम नायब तहसीलदार व खंड शिक्षा अधिकारी ने टीचर लगवाने का भरोसा देकर खुलवाया था। लेकिन परिणाम वही ढाक के तीन पात वाला रहा। अभिभावकों- हरीपाल, काका राणा, किरण पाल, दीपा, राजेश कुमार, सोमपाल, विनोद आदि ने कहा कि वार्षिक परीक्षाओं का समय है। सरकार बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ कर रही है।