
रोग, दोष, भय दूर करते हैं भगवान काल भैरव
प्रत्येक माह आने वाले कालाष्टमी व्रत का विशेष महत्व माना जाता है। इस व्रत में भगवान शिव के कालभैरव रूप की पूजा का विधान है। प्रत्येक माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को यह व्रत रखा जाता है। कालाष्टमी व्रत करने से शत्रुओं का भय और दुर्भाग्य दूर होता है तथा सौभाग्य की प्राप्ति होती है। भगवान काल भैरव की उपासना से अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है। परिवार में सुख-शांति व आरोग्य की प्राप्ति होती है। भगवान काल भैरव की पूजा से रोग, दोष, भय से मुक्ति मिलती है।
भगवान कालभैरव के पूजन और व्रत से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। हाथ में त्रिशूल, तलवार और डंडा होने के कारण भगवान काल भैरव को दंडपाणि भी कहा जाता है। इस व्रत में श्री भैरव चालीसा का पाठ करें। भगवान भैरव के मंदिर में जाकर सिंदूर, सरसों का तेल, नारियल, चना, पुए और जलेबी चढ़ाकर भक्ति भाव से पूजन करें। भगवान भैरव के समक्ष सरसो के तेल का दीपक जलाएं और श्रीकालभैरवाष्टकम् का पाठ करें। कालाष्टमी के दिन से लेकर 40 दिनों तक लगातार काल भैरव का दर्शन करने से भगवान भैरव प्रसन्न होते हैं। इस व्रत में काले कुत्ते को मीठी रोटी खिलाएं। शाम को आरती के बाद फलाहार करें। अगले दिन सुबह स्नान-पूजा पाठ के बाद ही व्रत खोलें। रात में चंद्रमा को जल अर्पित अवश्य करें।