
खट्टर बोले-5293 करोड़ का घाटा हुड्डा ने कहा-किसानों का क्या कसूर
गन्ने के दाम बढ़ाने पर भी रार बरकरार
हरियाणा के गन्ना उत्पादक किसानों के आंदोलन के बीच सरकार ने गन्ने के दामों में 10 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी कर दी है। इस बढ़ोतरी के बाद भी किसान नाखुश हैं और विपक्ष ने भी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। सीएम मनोहर लाल खट्टर ने शुगर मिलों की आर्थिक स्थिति सामने रखते हुए साफ कहा कि विपरित परिस्थितियों में भी सरकार किसानों के साथ खड़ी है। राज्य की शुगर मिलों का घाटा 5293 करोड़ रुपये पहुंच गया है।
वहीं विपक्ष के नेता व पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने इस मामले में सरकार पर पलटवार करते हुए पंजाब के साथ तुलना की है। हुड्डा ने दो-टूक कहा, शुगर मिलों का घाटा अगर बढ़ा है तो इसमें किसानों का क्या कसूर है। सरकार का प्रबंधन अच्छा नहीं है। सरकार को चाहिए कि घाटा अपने ऊपर ले और किसानों को उनकी लागत का पूरा मूल्य दे ताकि किसानों के लिए खेती लाभ का सौदा बन सके। वर्तमान में तो उनकी लागत तक पूरी नहीं हो रही।
बुधवार को चंडीगढ़ स्थित अपने आवास पर मीडिया से बातचीत में सीएम ने कहा, चीनी मिलों का बंद होना न तो किसानों के हित में है और न ही मिलों के। हालांकि चीनी की मौजूदा कीमत उम्मीद के मुताबिक नहीं बढ़ी है, फिर भी हम चीनी की कीमत की तुलना में गन्ना किसानों को अधिक कीमत दे रहे हैं। चीनी मिलें लगातार घाटे में चल रही हैं, लेकिन फिर भी हमने समय-समय पर किसानों के हितों की रक्षा की है।
सरकारी मिलों में चीनी की रिकवरी का प्रतिशत 9.75 है, जबकि निजी मिलों का प्रतिशत 10.24 है। उन्होंने कहा कि चीनी की रिकवरी बढ़ाने और मिलों को अतिरिक्त आय के लिए मिलों में एथेनॉल और ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना के साथ-साथ सहकारी चीनी मिलों की क्षमता बढ़ा रहे हैं। वहीं हुड्डा का दावा है कि पंजाब के मुकाबले हरियाणा में चीनी की रिकवरी अधिक है। वहां गन्ने का भाव भी अधिक है, लेकिन हरियाणा फिर भी किसानों को उनका हक नहीं दे रहा। मुख्यमंत्री ने कहा कि गन्ने के मूल्य निर्धारण के लिए कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री जेपी दलाल की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की थी, जिसने गन्ना किसान की मांगों पर विचार करने के बाद अपनी रिपोर्ट सौंपी।
सबसे अधिक मूल्य देता आया हरियाणा
सबसे अधिक मूल्य देता आया हरियाणा
मुख्यमंत्री मनोहर लाल का कहना है कि सरकार हमेशा ही किसानों के साथ खड़ी है। सरकार ने पिराई सत्र 2022-23 के लिए गन्ने का राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) 362 रुपये प्रति क्विंटल से 372 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ा दिया है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार हमेशा ही गन्ना किसानों को सबसे ज्यादा राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) देती आई है। 2020-21 में हरियाणा में गन्ने का एसएपी 350 था तो पंजाब में यह मूल्य 310, उत्तर प्रदेश में 325 और उत्तराखंड में 326 था। 2021-22 में प्रदेश में गन्ने का एसएपी 362 रुपये निर्धारित किया था। इस पंजाब में गन्ने का राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) 360, उत्तर प्रदेश में 350 और उत्तराखंड में 355 रुपये प्रति क्विंटल रहा। उन्होंने कहा कि चीनी मिलों को गन्ने की कीमत का भुगतान करने में भी हरियाणा अन्य राज्यों से आगे है। 2020-21 में हरियाणा में पूरी पेमेंट की जा चुकी है।
पटवारियों का पे-स्केल बढ़ाया
मनोहर लाल ने कहा कि पिछले दिनों पटवारियों ने सरकार के समक्ष अपने वेतन में वृद्धि की मांग रखी थी। इसका सरकार ने अध्ययन किया और माना कि वेतन में वृद्धि की जानी चाहिए। इसलिए पटवारियों को पे-स्केल बढ़ाया है और अब उनका वेतन 25 हजार से 32,100 रुपये हो गया है। इस बारे में 24 जनवरी को अधिसूचना जारी की जा चुकी है।
पारदर्शिता के लिए ई-टेंडरिंग
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार ने विकास कार्यों में पारदर्शिता लाने के लिए ई-टेंडरिंग की व्यवस्था शुरू की है। हमने छोटे टेंडर यानी 25 लाख रुपये तक के कार्य के लिए समय सीमा 4 दिन, 1 करोड़ रुपये तक की 15 दिन निर्धारित की है। सरकार ने गांवों में विकास के लिए पंचायती राज संस्थाओं के खातों में 1100 करोड़ की राशि भेजी है। पंचायतों ने प्रस्ताव पारित करने शुरू कर दिए हैं।
गन्ने के मुद्दे पर राजनीति न करे विपक्ष, किसान यूनियन
मुख्यमंत्री ने कहा कि विपक्ष और कुछ किसान यूनियन इस विषय पर राजनीति कर रहे हैं, जो कि उचित नहीं है। किसान भी आज समझते हैं कि चीनी मिलें घाटे में चल रही हैं और फिर भी सरकार किसानों के हित में निर्णय ले रही है। इसलिए विपक्ष के नेता और कुछ किसान यूनियन इस विषय पर राजनीति न करें, जनता उन्हें जवाब देगी।
5 से शुरू होगी नियमित गिरदावरी
मुख्यमंत्री ने कहा कि इस मौसम में सर्दी अधिक पड़ी है, जिसके कारण सरसों की फसल काफी प्रभावित हुई है। नुकसान का आंकलन करने के लिए 5 फरवरी से नियमित गिरदावरी शुरू की जाएगी और जहां-जहां नुकसान हुआ है, किसानों को उचित मुआवजा दिया जाएगा।
बाजरा का 120 करोड़ अभी तक बकाया : हुड्डा
गन्ने के साथ पूर्व सीएम हुड्डा ने बाजरा उत्पादक किसानों के बकाया पर भी सरकार को घेरा है। यहां मीडिया से बातचीत में पूर्व सीएम ने कहा, सरकार ने बाजरा की खरीद भावांतर भरपाई योजना के तहत की। अभी तक किसानों के 120 करोड़ रुपये बकाया है। उन्हें यह पैसा सरकार ने नहीं दिया है। हुड्डा ने कहा, हमारी सरकार ने नौ वर्षों में गन्ने के रेट 165 प्रतिशत बढ़ाए थे। यानी हर साल करीब 17 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। वहीं मौजूदा सरकार ने साढ़े आठ वर्षों में महज 17 प्रतिशत इजाफा किया है। साठ प्रतिशत तक सरसों की फसल पाला पड़ने से खराब हो गई है, लेकिन सरकार ने अभी तक भी स्पेशल गिरदावरी के आर्डर नहीं दिए हैं।
आमदनी दोगुनी का नारा भूल गई भाजपा : सैलजा
पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी सैलजा ने कहा कि गन्ने के दाम में 10 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी करना किसानों के साथ भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार का भद्दा मजाक है। किसानों की आमदनी दोगुनी करने का नारा देकर सत्ता में आई भाजपा किसानों को बर्बाद करने पर तुली हुई है। गन्ने के दाम बढ़ाने में न तो बढ़ती महंगाई दर का ही ध्यान रखा गया और न ही गन्ना पैदा करने में बढ़ी लागत और किसानों की बिगड़ती आर्थिक स्थिति को देखा गया। गन्ने की फसल चीनी मिलों में जाने से पहले ही दामों में बढ़ोतरी की जानी चाहिए थी, लेकिन भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार ने ऐसा नहीं किया। किसानों की मांग के बावजूद सरकार बार-बार गन्ने के भाव में बढ़ोतरी से इनकार करती रही। अब जो दामों में बढ़ोतरी की गई है, वह किसानों के आंदोलन को देखते हुए की गई है। इस साल मुद्रास्फीति की दर में 7 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हुई है। इससे किसान को पिछले साल के मुकाबले गन्ना बेचने पर 7 प्रतिशत का नुकसान होगा।
पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी सैलजा ने कहा कि गन्ने के दाम में 10 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी करना किसानों के साथ भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार का भद्दा मजाक है। किसानों की आमदनी दोगुनी करने का नारा देकर सत्ता में आई भाजपा किसानों को बर्बाद करने पर तुली हुई है। गन्ने के दाम बढ़ाने में न तो बढ़ती महंगाई दर का ही ध्यान रखा गया और न ही गन्ना पैदा करने में बढ़ी लागत और किसानों की बिगड़ती आर्थिक स्थिति को देखा गया। गन्ने की फसल चीनी मिलों में जाने से पहले ही दामों में बढ़ोतरी की जानी चाहिए थी, लेकिन भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार ने ऐसा नहीं किया। किसानों की मांग के बावजूद सरकार बार-बार गन्ने के भाव में बढ़ोतरी से इनकार करती रही। अब जो दामों में बढ़ोतरी की गई है, वह किसानों के आंदोलन को देखते हुए की गई है। इस साल मुद्रास्फीति की दर में 7 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हुई है। इससे किसान को पिछले साल के मुकाबले गन्ना बेचने पर 7 प्रतिशत का नुकसान होगा।