…जल जाएं मगर आग पे चलते ही रहेंगे
ग्राउंड जीरो केएमपी एक्सप्रेस-वे की तेज रफ्तार के बीच सरकार चल रही कछुआ चाल । टोल से करोड़ों की कमाई, सुविधाओं के नाम पर जीरो
कुंडली-मानेसर-पलवल, 31 जनवरी
‘गिर-गिर के मुसीबत में संभलते ही रहेंगे, जल जाएं मगर आग पे चलते ही रहेंगे’। 1957 में आई फिल्म ‘मदर इंडिया’ के एक गीत के ये बोल हरियाणा की ‘लाइफलाइन’ बन चुके कुंडली-मानेसर-पलवल (केएमपी) एक्सप्रेस-वे पर सटीक बैठ रहे हैं। औद्योगिक, व्यापारिक और परिवहन सुविधाओं के लिहाज से भले ही केएमपी लाइफलाइन है, लेकिन यहां ‘लाइफ’ में जोखिम ही जोखिम हैं। 135 किमी के सफर में जगह-जगह वार्निंग (चेतावनी) तो पढ़ने को मिलेगी, लेिकन जन-सुविधाओं का पूरे एक्सप्रेस-वे पर कहीं जिक्र नहीं मिलेगा।
दैनिक ट्रिब्यून ने ‘हाईवे ऑफ लाइफ’ को करीब से देखा भी और भोगा भी। यह सिक्स लेन सड़क कहने को एक्सप्रेस-वे जरूर है, लेकिन कहीं भी ब्रेक लगाने पड़ सकते हैं। कुछ जगहों पर गड्ढे आपको परेशान करेंगे, तो कहीं झटकों से आपका स्वागत होगा। इससे भी जैसे-तैसे इंसान पार पा ले, लेकिन कोई अनहोनी हो जाये, गाड़ी का टायर पंक्चर हो जाये, पेट्रोल-डीजल खत्म हो जाये या फिर भूख आपको सता रही हो, तो उसे मिटाने के लिए कोई व्यवस्था नहीं होगी। गाड़ी खराब होने या टायर पंक्चर होने जैसी घटना अगर रात को घट गई, तो पूरी रात सड़क पर गुजरनी तय है।
ऐसी स्थिति में आप ‘रामभरोसे’ ही हैं। सुबह भी आपको खुद ही अपनी मदद करनी होगी। जी हां, न केवल जेब ढीली करनी होगी, बल्कि समस्याओं से भी दो-चार होना पड़ेगा। महंगे रेट पर पंक्चर वाला आप तक पहुंचेगा या फिर किराया खर्च करके आप खुद टायर लेकर पंक्चर वाले तक पहुंचेंगे।
यह स्थिति प्रदेश के उस एक्सप्रेस-वे की है, जहां से रोजाना लाखों वाहन गुजरते हैं और सरकार को करोड़ों रुपये की आमदनी होती है। एक्सप्रेस-वे बनाया गया तो इसके दोनों साइड वाहन चालकों के लिए बेहतर सुविधाएं देने का भी वादा किया गया था। पिछले कई वर्षों से एक्सप्रेस-वे चल रहा है, लेकिन सुविधाओं के नाम पर यहां कुछ नहीं है। कहना ही होगा कि एक्सप्रेस-वे की रफ्तार के सामने सरकार कछुआ चाल से ही चल रही है। ऐसा लगता है जैसे सरकार वाहन चालकों की अग्निपरीक्षा ले रही है। देखा जा रहा है कि लोग कब तक झेल सकते हैं।