
वैध पहचान को तरस रहा केएमपी, सरकार से भी लगाई गुहार
ग्राउंड जीरो : करीब पांच वर्ष से सरपट दौड़ रहे वाहन, सड़क को नहीं मिला दर्जा
कुंडली-मानेसर-पलवल, 1 फरवरी (टि्रन्यू)
‘आंखों से अंधे और नाम नैनसुख’। कुछ ऐसी ही दास्तां है कुंडली-मानेसर-पलवल एक्सप्रेस-वे की। बेशक, यह एक्सप्रेस-वे प्रदेश के औद्योगिक विकास में मील का पत्थर साबित हो सकता है। कई महत्वपूर्ण शहरों को इससे कनेक्टिविटी भी मिली है। सड़क में अब गड्ढे पड़ने शुरू हो गए हैं। कायदे से इसकी मरम्मत का काम संबंधित एजेंसी का है, जो इस एक्सप्रेस-वे को चला रही है और टोल टैक्स से मोटी कमाई भी कर रही है, लेकिन इस ओर किसी का ध्यान गया ही नहीं।
इससे भी रोचक बात यह है कि पांच जिलों के सीने को चीरता हुआ 135 किलोमीटर लंबाई वाला कुंडली-मानेसर-पलवल एक्सप्रेस-वे अपनी वैधता के लिए तरस रहा है। केएमपी को मान्यता चाहिए, जो उसे आज तक नहीं मिली है। एचएसआईआईडीसी यानी हरियाणा राज्य इंडस्िट्रयल इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलेपमेंट कॉरपोरेशन की यह एक निजी सड़क बनकर रह गई है। इसे न तो सरकार नेशनल हाईवे का दर्जा दिलवा पाई है और न ही इसे स्टेट हाईवे ही घोषित किया है।
इसके साथ ही बनकर तैयार हुए केजीपी यानी कुंडली-गाजियाबाद-पलवल एक्सप्रेस-वे को नेशनल हाईवे का दर्जा मिला हुआ है।
क्वालिटी में समझौता हुआ और विवाद भी
केएमपी निर्माण का फैसला चौटाला सरकार के समय हुआ था। इसको लेकर कई तरह के विवाद भी हुए। चौटाला सरकार में भूमि अधिग्रहण के लिए तय मुआवजा राशि से किसान नाराज थे। सो, आंदोलन चलता रहा और केएमपी की राह में रुकावटें रहीं। बाद में भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने मुआवजा राशि बढ़ाई तो इसके निर्माण का रास्ता साफ हुआ। निर्माण शुरू होता इससे पहले ही मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया। हुड्डा सरकार अपने दो कार्यकाल पूरे कर गई, लेकिन केएमपी को पूरा नहीं किया जा सका। मनोहर लाल के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने अपने पहले ही कार्यकाल में इससे जुड़े कोर्ट केस निपटवाए और निर्माण शुरू किया। ठेका अपने किसी ‘चहेते’ को दिया। ऐसे में क्वालिटी में भी समझौता हुआ और विवाद भी हुआ। हालांकि बाद में हिसाब-किताब करके इसे सरकार ने एचएसआईआईडीसी के हवाले कर दिया। अब यह एचएसआई आईडीसी की निजी प्रॉपर्टी है।
प्राइवेट कंपनी को टोल कलेक्शन का जिम्मा
मई-2018 में पीएम नरेंद्र मोदी ने एक्सप्रेस-वे का उदघाटन किया था। एचएसआईआईडीसी ने अब टोल कलेक्शन का जिम्मा एक प्राइवेट एजेंसी को दिया हुआ है। बताते हैं कि केएमपी से रोजाना सवा एक लाख से अधिक वाहनों का आवागमन होता है। कंपनी ने एचएसआईआईडीसी के साथ एक करोड़ 19 लाख रुपये रोजाना के हिसाब से ठेका लिया हुआ है। यानी कंपनी निगम को यह पैसा तो देगी ही, चाहे उसकी उतनी कलेक्शन हो या न हो। सूत्रों का कहना है कि कंपनी रोजाना औसतन डेढ़ करोड़ रुपये से अधिक कमा रही है। इस लिहाज से अगर देखें तो माह में 45 करोड़ और सालाना 540 करोड़ रुपये केएमपी से जुटाए जा रहे हैं। इतना पैसा इकट्ठा होने के बाद भी न तो केएमपी में सुधार हो रहा है और न ही यहां मूलभूत सुविधाएं वाहन चालकों व यात्रियों के लिए शुरू हो पाई हैं।
वैध मान्यता के लिए सरकार से गुहार
एचएसआईआईडीसी ने अब प्रदेश सरकार को पत्र लिखा है। इस पत्र में इस एक्सप्रेस-वे को वैध मान्यता देने की गुहार लगाई है। निगम का कहना है या तो सरकार एक्सप्रेस-वे को नेशनल हाईवे घोषित करवाए। अगर ऐसा नहीं हो सकता तो स्टेट हाईवे का दर्जा दिया जाए। नेशनल या स्टेट हाईवे बनने के बाद बहुत सी परेशानियों का समाधान खुद-ब-खुद हो जाएगा।
केजीपी है नेशनल हाईवे
कुंडली-मानेसर-पलवल एक्सप्रेस-वे के साथ ही केजीपी यानी कुंडली-गाजियाबाद-पलवल एक्सप्रेस-वे का निर्माण हुआ। केजीपी का निर्माण नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने करवाया और यह नेशनल हाईवे की लिस्ट में भी शुमार है। इसी तरह इस्माइलाबाद से रायमिलकपुर (राजस्थान बाॅर्डर) तक बने 152डी का निर्माण भी नेशनल हाईवे से करवाया है और यह लिस्ट में शामिल है।
‘इंडिया गेट’ का भी ‘अपमान’
केएमपी के एंट्री प्वाइंट यानी कुंडली टोल प्लाजा के पास एचएसआईआईडीसी द्वारा इंडिया गेट की प्रतिकृति निर्माण करवाया हुआ है। यह नई दिल्ली स्थित इंडिया गेट जैसा है, लेकिन साइज में काफी छोटा है। इंडिया गेट को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है, लेकिन केएमपी पर बना इंडिया गेट दुर्दशा का शिकार है। झाड़ियां उगी हुई हैं। पत्थर टूट चुके हैं और कोई साफ-सफाई नहीं है। यानी इस एक्सप्रेस-वे पर चढ़ते ही वाहन चालकों को यह झलक देखने को मिलती है।
गेंद अब सरकार के पाले में
आसपास के ग्रामीण भी चाहते हैं कि एक्सप्रेस-वे को या तो नेशनल हाईवे का दर्जा मिले या फिर स्टेट हाईवे घोषित किया जाए। इस मांग को लेकर आंदोलन भी होते रहे हैं। विवाद आज भी जारी है। एचएसआईआईडीसी के अधिकारी नाम नहीं छापने की शर्त पर बताते हैं कि उनकी तरफ से तो सरकार को लिखा जा चुका है। अब यह सरकार के स्तर पर निर्णय होगा कि इस रोड का वैध नामकरण कब और किस रूप में होगा।
निजी मार्ग ही बनकर रह गया एक्सप्रेस वे
केएमपी एक्सप्रेस-वे नाम तो दे दिया गया, लेकिन यह है अभी भी प्राइवेट कंपनी का रोड ही एचएसआईआईडीसी भले ही प्रदेश सरकार की कंपनी है, लेकिन इसे प्राइवेट ही कहा जाएगा। अभी तक आपने आरडब्ल्यूए या किसी फार्म हाउस मालिक के निजी रोड के बारे में तो सुना होगा। ऐसी सड़कों पर उनकी मर्जी होती है, वे किसी को जाने दें या नहीं। कुंडली-मानेसर-पलवल एक्सप्रेस-वे भी ऐसा ही मार्ग बनकर रह गया है।